What is Geneva Convention ( जेनेवा संधि ) ?

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हेलो दोस्तों, आज कल आप देख ही रहे होंगे कि भारत और पाकिस्तान के बीच कितना तनाव है इसी बीच भारत के फाइटर पाइलट अभिनन्दन के पकिस्तान में बंदी बन जाने के बाद ये जिनेवा समझौता (Geneva Convention) अचानक की प्रकाश में आ गया और हर जगह सिर्फ जिनेवा समझौता की ही बात हो रही है। हम ये भगवान से प्रार्थना करते हैं हमारे फाइटर पाइलट अभिनन्दन जल्द से जल्द और सकुशल वापस भारत आ जाये।

तो दोस्तों आइए हम देखते हैं कि ये जिनेवा समझौता (Geneva Convention) क्या है , कब ये समझौता हुआ था और उससे हममें इस समय क्या लाभ मिल सकता है।

क्या कहता है विकिपीडिया जेनेवा समझौता ( Geneva Convention ) के बारे में

जिनेवा सम्मेलन, द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के बाद बातचीत के जरिए 1949 के समझौतों को दर्शाता है, जिसमें पहली तीन संधियों (1864, 1906, 1929) की शर्तों को अद्यतन (अपडेट) किया गया और चौथी संधि जोड़ी गयी। चौथे जिनेवा सम्मेलन (1949) के अनुच्छेदों में बड़े पैमाने पर कैदियों के युद्धकालीन बुनियादी अधिकारों (नागरिक और सैन्य) को परिभाषित किया गया

युद्ध क्षेत्र में और आसपास के क्षेत्र में नागरिकों और घायलों के लिए सुरक्षा स्थापित किये जाने की व्यवस्था दी। 1949 की संधियों का 194 देशों ने पूर्णतः या अपवादों के साथ अनुमोदन किया।

credit wikipedia.org

Geneva Convention: क्या है जेनेवा संधि?

युद्धबंदियों (POW) के अधिकारों को बरकरार रखने के जेनेवा समझौता (Geneva Convention) में कई नियम दिए गए हैं. जेनेवा समझौते में चार संधियां और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल (मसौदे) शामिल हैं, जिसका मकसद युद्ध के वक्त मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए कानून तैयार करना है.

जिनेवा सम्मलेन में चार संधियां और तीन प्रोटोकॉल (मसौदे ) शामिल  हैं  जो युद्ध के मानवीय उपचार के लिए अंतररष्ट्रीय कानून के मानको को स्थापित करते हैं। 

युद्धबंदियों (POW) के अधिकारों को बरकरार रखने के जेनेवा समझौता (Geneva Convention) में कई नियम दिए गए हैं.
जेनेवा समझौते में चार संधियां और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल (मसौदे) शामिल हैं, जिसका मकसद युद्ध के वक्त मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए कानून तैयार करना है. मानवता को बरकरार रखने के लिए पहली संधि 1864 में हुई थी. इसके बाद दूसरी और तीसरी संधि 1906 और 1929 में हुई. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में 194 देशों ने मिलकर चौथी संधि की थी. इंटरनेशनल कमेटी ऑफ रेड क्रास के मुताबिक जेनेवा समझौते में युद्ध के दौरान गिरफ्तार सैनिकों और घायल लोगों के साथ कैसा बर्ताव करना है इसको लेकर दिशा निर्देश दिए गए हैं. इसमें साफ तौर पर ये बताया गया है कि युद्धबंदियों (POW) के क्या अधिकार हैं. साथ ही समझौते में युद्ध क्षेत्र में घायलों की उचित देखरेख और आम लोगों की सुरक्षा की बात कही गई है. जेनेवा समझौते में दिए गए अनुच्छेद 3 के मुताबिक युद्ध के दौरान घायल होने वाले युद्धबंदी का अच्छे तरीके से उपचार होना चाहिए.

युद्धबंदियों (POW) के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार नहीं होना चाहिए.* उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए. साथ ही सैनिकों को कानूनी सुविधा भी मुहैया करानी होगी. जेनेवा संधि के तहत युद्धबंदियों को डराया-धमकाया नहीं जा सकता. इसके अलावा उन्हें अपमानित नहीं किया जा सकता. इस संधि के मुताबिक युद्धबंदियों (POW) पर मुकदमा चलाया जा सकता है. इसके अलावा युद्ध के बाद युद्धबंदियों को वापस लैटाना होता है. कोई भी देश युद्धबंदियों को लेकर जनता में उत्सुकता पैदा नहीं कर सकता. युद्धबंदियों से सिर्फ उनके नाम, सैन्य पद, नंबर और यूनिट के बारे में पूछा जा सकता है.

जेनेवा संधि से जुड़ी मुख्य बातें (Geneva Convention Rules)

  • इस संधि के तहत घायल सैनिक की उचित देखरेख की जाती है.
  • संधि के तहत उन्हें खाना पीना और जरूरत की सभी चीजें दी जाती है.
  • इस संधि के मुताबिक किसी भी युद्धबंदी के साथ अमानवीय बर्ताव नहीं किया जा सकता.
  • किसी देश का सैनिक जैसे ही पकड़ा जाता है उस पर ये संधि लागू होती है. (फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष)
  • संधि के मुताबिक युद्धबंदी को डराया-धमकाया नहीं जा सकता.
  • युद्धबंदी की जाति, धर्म, जन्म आदि बातों के बारे में नहीं पूछा जाता.

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